वो लम्हे जो साथ गुज़ारे थे हमने,
नश्तर की तरह मुझको चुभते है अब;
वो हर चीज़ जो कभी मरहम हुआ करती थी,
एक नया ज़ख्म मुझको दे जाती है अब;
चाहा दिल, कभी तो देंगे तेरे दरवाज़े पर दस्तक,
वो उम्मीद भी कम ही नज़र आती है अब
एक बेखुमारी थी के उम्र भर बने रहेंगे हम साथ,
एक मुद्दत के बाद नींद से में जागा हु अब;
काश ये रिश्तों की दरारें ख्वाबों की तरह होती "आसिफ"
आंख खुलते ही भूल जाते हम सब |
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